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रेशम के धागों से बुनी समृद्धि की कहानी

  रायपुर। जशपुर जिले के आदिवासी बहुल क्षेत्र टांगरगांव में बदलाव की एक नई कहानी लिखी जा रही है। यहां के किसान अब रेशम विभाग की कोसा पालन योज...


 

रायपुर। जशपुर जिले के आदिवासी बहुल क्षेत्र टांगरगांव में बदलाव की एक नई कहानी लिखी जा रही है। यहां के किसान अब रेशम विभाग की कोसा पालन योजना के जरिए आत्मनिर्भर बन रहे हैं और समृद्धि की ओर बढ़ रहे हैं। परशु राम, राजकुमार, सुभाधर और अगस्तुस जैसे किसानों ने इस योजना को अपनाकर अपनी जिंदगी को एक नई दिशा दी है।

कुछ साल पहले तक, टांगरगांव के ये किसान अपनी आजीविका चलाने के लिए दूसरे राज्यों में मजदूरी करने को मजबूर थे। सालभर की मेहनत के बाद भी केवल 30-35 रूपए हजार ही बचा पाते थे। परिवार चलाना मुश्किल था, बच्चों की पढ़ाई और बेहतर जीवन के सपने अधूरे लगते थे। लेकिन, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में रोजगारोन्मुख योजनाओं को प्राथमिकता देते हुए रेशम विभाग ने कोसा पालन योजना को टांगरगांव में लागू किया। 5 हेक्टेयर वनभूमि पर साजा और अर्जूना के पौधे लगाए गए। इन पौधों पर कोसा कीट पालन कर किसानों को न केवल रोजगार का अवसर मिला, बल्कि उनकी आय में कई गुना बढ़ोतरी हुई।

वर्ष 2024-25 में टांगरगांव के इन किसानों ने 3000 डीएफएल्स (डिंबों) का पालन किया और 1,51,080 कोसाफल का उत्पादन किया। इस उत्पादन से कुल 5 लाख 20 हजार से अधिक की आमदनी हुई। प्रत्येक किसान को औसतन 1.50 लाख रूपए की वार्षिक आय प्राप्त हुई। इस अतिरिक्त आय ने न केवल इन किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारा, बल्कि उनके परिवारों में भी खुशहाली लायी है। बच्चों को अब अच्छे स्कूलों में शिक्षा मिल रही है। पक्के मकानों का निर्माण हो रहा है। पूरे परिवार के लिए अच्छे कपड़े और जरूरतें पूरी हो रही हैं। मजदूरी के लिए अन्य राज्यों में जाने की मजबूरी खत्म हो गई है।

परशु राम और उनके साथियों ने बताया, ‘कोसा पालन योजना ने हमारी जिंदगी बदल दी है। पहले जो सपने देखना भी मुश्किल लगता था, अब वे पूरे हो रहे हैं। बच्चों को पढ़ाई के लिए अच्छे स्कूल भेज पा रहे हैं। अब हमारे पास रोजगार है, आय है, और भविष्य के लिए उम्मीदें हैं। रेशम विभाग किसानों को उन्नत तकनीक, प्रशिक्षण और सहायता प्रदान कर रहा है। किसी भी समस्या का समाधान करने के लिए अधिकारी और कर्मचारी तुरंत मौके पर पहुंचते हैं। इस योजना के कारण जिले में मजदूरी के लिए पलायन में 75 प्रतिशत की कमी आई है।

रेशम विभाग की इस योजना ने आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास का नया मॉडल पेश किया है। टांगरगांव के ये किसान अब न केवल आत्मनिर्भर हो चुके हैं, बल्कि उनकी कहानी अन्य गांवों के लिए प्रेरणा बन रही है। रेशम के नाजुक धागों से बुनी यह सफलता की कहानी साबित करती है कि सही योजना और मेहनत से बड़े बदलाव संभव हैं। कोसा पालन ने इन किसानों को सिर्फ रोजगार ही नहीं, बल्कि एक नया जीवन भी दिया है। अब टांगरगांव के ये किसान न केवल अपने सपनों को पूरा कर रहे हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर भविष्य की नींव भी रख रहे हैं।

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