नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में बुधवार को 26 सीटों पर होने जा रहे मतदान में पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से लेक...
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में बुधवार को 26 सीटों पर होने जा रहे मतदान में पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र रैना समेत कई महत्त्वपूर्ण नेताओं के साथ-साथ कुल 239 प्रत्याशियों की किस्मत वोटिंग मशीन में बंद हो जाएगी। इस चरण में लाल चौक से लेकर माता वैष्णो देवी और राजौरी, पुंछ से लेकर हजरतबल और गांदरबल जैसी अहम सीटें शामिल हैं। लेकिन, सबकी निगाहें राज्य में अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लिए पहली बार आरक्षित सीटों पर टिकी हैं। दूसरे चरण के चुनाव में 11 सीट जम्मू संभाग और 15 सीट कश्मीर में आती है।
राज्य में एसटी के लिए आरक्षित कुल नौ सीटों में से सात पर दूसरे चरण में ही मतदान होना है। इन सीटों पर गुज्जर-बकरवाल और पहाड़ी आदिवासी नेता मैदान में हैं। एसटी के लिए आरक्षित सीटों में गांदरबल जिले की कंगन, रियासी जिले की गुलाबगढ़, राजौरी जिले की राजौरी, बुधल और थन्नामंडी, पुंछ जिले की सुरनकोट और मेंढर विधानसभा सीट पर बुधवार को मतदान होगा। इन सीटों पर कांटे का मुकाबला है। क्योंकि, आदिवासियों के वोट बंटे तो गैर आदिवासी मतदाता हार-जीत का फैसला करेंगे। कई सीटों पर गुज्जर-बकरवाल और पहाड़ी समुदाय के नेता आमने-सामने हैं। इस कारण प्रत्याशी और पार्टी नेताओं ने मतदान के एक दिन पहले तक खूब पसीना बहाया।
एसटी आरक्षित सीट के मतदाता क्या सोचते हैं। यह जानने के लिए मैंने श्रीनगर से कंगन की ओर रुख किया। रास्ते में खेतों में किसान और पशुपालक मिले। पशुपालक मुजाफर अहमद से चुनाव की चर्चा छेड़ी तो उन्होंने कहा, यहां एनसी ज्यादा ताकतवर लग रही है, लेकिन भाजपा को लेकर भी सोच बदली है। क्योंकि पहले आदिवासी समुदाय को दबाकर रखा गया था। मोदी सरकार ने कुछ काम तो अच्छे किए हैं। अब खाते में सीधे पैसे आ रहे हैं, पहले तो पता भी नहीं चलता था।
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