नई दिल्ली। विपक्ष लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहा है। अब एनडीए की सहयोगी जेडीयू ने भी विपक्ष के साथ सुर मिला दिया है। जेडीयू ने भी ...
नई दिल्ली। विपक्ष लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहा है। अब एनडीए की सहयोगी जेडीयू ने भी विपक्ष के साथ सुर मिला दिया है। जेडीयू ने भी कहा है कि जाति आधारित जनगणना को संसदीय समिति में चर्चा के लिए शामिल किया जाए। आजादी के बाद से भारत सरकार ने कभी जातिगत जनगणना नहीं करवाई। हालांकि यूपीए सरकार ने जनगणना के वक्त जातियों का आंकड़ा इकट्ठा जरूर करवाया था लेकिन इसे आज तक सार्वजनिक नहीं किया जा सका।
यूपीए 2 के दौरान जब सरकार ने गरीबों के लिए अपनी योजनााओं का विस्तार करना चाहा तो गरीबी के स्तर का पता लगाने के लिए उसने शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में सोशियो इकोनॉमिक कास्ट सेंसस कराने का फैसला लिया। इसमें कुछ नियम तय किए गए थे जिनके तहत कुछ वर्गों को ऑटोमैटिक ही गरीबों की सूची में शामिल किया जाना था। अगर किसी परिवार के पास कार, तीन कमरों वाला पक्का मकान था तो उसे सीधे गरीबी रेखा से हटा दिया गया था। वहीं सिंगल मदर और मैला ढोने वालों को गरीबी रेखा के नीचे की सूची में रखा जाना था। इसका मुख्य उद्देश्य परिवारों का सामाजिक-आर्थिक स्तर पर निर्धारण था। वहीं आर्थिकि और सामाजिक स्थिति के आधार पर उसकी जाति का भी पता लगाना था।
2011 की जनगणना में कैसे केंद्र सरकार ने जाति को शामिल किया?
27 मई 2010 की बैठक में कांग्रेस आलाकमान ने तय किया कि 2011 की जनगणना के साथ ही जाति के आधार पर आंकड़े भी इकट्ठा करवाए जाए। इससे सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर तथ्यात्मक जानकारी सामने आ जाएगी। हालांकि इस जनगणना में केवल गिनती ही की जानी थी। जाति के आधार पर किसी के सामाजिक और आर्थिक स्तर की जानकारी बताने पर पहले ही सहमति नहीं बनी थी। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अगुआई में कुछ मंत्रियों को यह काम सौंप दिया।
जब जनगणना का काम शुरू हो चुका था तब यह फैसला लिया गया। सरकार ने 2011 की जनगणना के लिए 2200 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। एनसी सक्सेना के अगुआई वाले ग्रुप ने प्रस्ताव रखा कि कुछ वर्गों को ऑटोमैटिक बीपीएल में रखा जाए और कुछ को बाहर कर दिया जाए। भूमि, वाहन, खेती के उपकरणों और इनकम टैक्स के आधार पर यह तय किया जाना था। वहीं आदिवासियों, महादलितों, सिंगल महिला, दिव्यांगों और बेघरों को ऑटोमैटिक बीपीएल श्रेणी में शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया। इसके अलावा अन्य लोगों को जाति, समुदाय, धर्म, काम, शिक्षा और घर के मुखिया की उम्र के आधार पर आंका जाना थआ।
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