नई दिल्ली। 18वीं लोकसभा में स्पीकर के चुनाव के लिए विपक्ष ने एनडीए उम्मीदवार ओम बिरला के ख़िलाफ़ अपना उम्मीदवार तो उतारा लेकिन मत विभाजन की ...
नई दिल्ली। 18वीं लोकसभा में स्पीकर के चुनाव के लिए विपक्ष ने एनडीए उम्मीदवार ओम बिरला के ख़िलाफ़ अपना उम्मीदवार तो उतारा लेकिन मत विभाजन की मांग नहीं की.
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सिर्फ़ तीन बार ही ऐसा हुआ है, जब स्पीकर के पद के लिए मतदान हुए हों, वरना इस पद पर हमेशा ही पक्ष और विपक्ष के बीच सहमति बन जाया करती थी. अतीत में 1952, 1967 और 1976 में स्पीकर के पद के लिए मतदान किए गए थे.
क्या स्पीकर के चुनाव में उम्मीदवार खड़ा करना विपक्ष की रणनीति का हिस्सा था? ऐसा कर विपक्ष ने सरकार को क्या संदेश देने की कोशिश की है?
इस चुनाव में इंडिया ब्लॉक ने कांग्रेस से अपने अनुभवी सांसद कोडिकुन्निल सुरेश को स्पीकर पद के लिए आगे किया था.
जब एनडीए की सहयोगी पार्टी जेडीयू के नेता और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने स्पीकर के चुनाव में वोटिंग की बात पूछी तो संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि विपक्ष ने इसकी मांग नहीं की.
कांग्रेस ने क्या कहा?
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करते हुए लोकसभा अध्यक्ष के रूप में कोडिकुन्निल सुरेश के समर्थन में प्रस्ताव पेश किया था.
उन्होंने लिखा कि स्पीकर का चुनाव मत विभाजन से नहीं ध्वनिमत से हुआ. हालांकि इसके बाद भी इंडिया गठबंधन की पार्टियां मत विभाजन की मांग कर सकती थीं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.
जयराम रमेश ने लिखा कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि इंडिया गठबंधन की पार्टियां सर्वसम्मति और सहयोग की उस भावना को मज़बूत करना चाहती थीं, जो प्रधानमंत्री और एनडीए ब्लॉक की पार्टियों के कामों में दिखाई नहीं देती है.
कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने कहा, “हमारा विरोध सांकेतिक था, लोकतांत्रिक था क्योंकि परंपरा तोड़कर डिप्टी स्पीकर नहीं देर रहे थे. इसलिए हमने साफ़ बता दिया कि संविधान नहीं बदलने देंगे. जनता के हितों के ख़िलाफ़ नहीं जाने देंगे. परंपराओं के ख़िलाफ़ नहीं जाने देंगे. अपनी पूरी शक्ति से विरोध करेंगे.''
No comments