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राहुल गांधी ने वायनाड छोड़ रायबरेली को ही क्यों चुना? 5 पॉइंट में समझें कांग्रेस की रणनीति

नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वायनाड लोकसभा सीट छोडऩे का फैसला किया है. वह अपने रायबरेली से सांसद बने रहेंगे. पार्टी के अध्यक्ष मल...


नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वायनाड लोकसभा सीट छोडऩे का फैसला किया है. वह अपने रायबरेली से सांसद बने रहेंगे. पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि प्रियंका गांधी वायनाड सीट पर होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस की आधिकारिक प्रत्याशी होंगी. बता दें कि राहुल गांधी ने हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में अपनी दोनों सीटों- वायनाड और रायबरेली पर प्रभावशाली अंतर से जीत हासिल की थी. नई दिल्ली में पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खडग़े के आवास पर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने चर्चा के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस फैसले की घोषणा की. उन्होंने केरल के वायनाड के बजाय उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से सांसद रहना क्यों चुना, हम इसके पांच कारण आपको बता रहें हैं...

यूपी में खोई जमीन  पाने की उम्मीद

2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में छह सीटें जीतीं. 2019 में उसे सिर्फ रायबरेली सीट पर जीत मिली थी. इंडिया ब्लॉक ने यूपी में 43 सीटें जीतीं, जिनमें से 37 समाजवादी पार्टी ने जीतीं. यह एनडीए के लिए एक बड़ा झटका था, जिसने 2019 में यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 62 सीटें जीती थीं. 2024 के चुनाव में, एनडीए सिर्फ 36 सीटें जीतने में कामयाब रही, जबकि बीजेपी को 33 सीटें हासिल हुईं. वोट शेयर के मामले में सबसे बड़ी हार मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को हुई. 

रणनीति बदलाव और आक्रामक रुख

2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे से उत्साहित कांग्रेस ने अपना रुख बदल लिया है. राहुल गांधी का रायबरेली संसदीय सीट को बरकरार रहना और वायनाड सीट छोडऩा उस आक्रामक दृष्टिकोण का संकेत है. रशीद किदवई के मुताबिक, कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदली है. अब उसने रक्षात्मक से आक्रामक रुख अपनाया है. वायनाड एक रक्षात्मक दृष्टिकोण था. क्योंकि राहुल 2019 में अमेठी से अपनी संभावित हार को देखते हुए वहां पहुंचे थे. 

कांग्रेस के लिए यूपी जरूरी 

कहा जाता है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. इसलिए, जब क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस के वोट बेस में सेंध लगाना शुरू किया, तो इसकी गिरावट सबसे पहले उत्तर प्रदेश और बिहार में दिखाई दी. केंद्र की सत्ता पर भी उसकी पकड़ ढीली होने लगी. अगर कांग्रेस को अपने दम पर केंद्र की सत्ता में आना है तो उसे खुद को उत्तर प्रदेश में पुनर्जीवित करना होगा.

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