सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण (EWS) को सही बताया है. इस केस की सुनवाई पांच जजों की बेंच ने ...
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण (EWS) को सही बताया है. इस केस की सुनवाई पांच जजों की बेंच ने की है. जिसमें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यूयू ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी, जस्टिस जेबी पारदीवाला और एस रवींद्र भट्ट शामिल हैं. ईडब्ल्यूएस आरक्षण के मामले में पांच में से तीन जजों ने इसे सही ठहराया है जबकि अन्य दो जजों ने इसके खिलाफ में फैसला सुनाया है. इस अंतर के बावजूद 3 जजों के बहुमत से इस आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई है।
फैसला पढ़ने के वक्त सीजेआई यूयू ललित ने सबसे पहले जस्टिस दिनेश माहेश्वरी को फैसला पढ़ने को कहा. इसके बाद जस्टिस माहेश्वरी ने फैसला पढ़ा और ईडब्ल्यूएस आरक्षण को संविधान के पक्ष में बताया. इसके बाद अन्य दो जजों ने भी इसके पक्ष में फैसला सुनाया है. आखिर में जस्टिस भट्ट ने इसे गलत बताया. इसके लिए उन्होंने अन्य आरक्षणों का हवाला दिया. सीजेआई ने भी इसे गलत बताया है।
जस्टिस माहेश्वरी ने EWS आरक्षण को सही ठहराया
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण संबंधी 103वें संविधान संशोधन को बरकरार रखा और कहा कि यह संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है. उन्होंने इस दौरान वर्गों के आधार पर आरक्षण और आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण पर कहा कि यह समानता का उल्लंघन नहीं करता है. उन्होंने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण 50% की अधिकतम लिमिट के कारण बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है. क्योंकि यह लिमिट इनफ्लेजिबल नहीं है. उन्होंने कहा, 103वें संविधान संशोधन को 50% सीमा से अधिक के लिए बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है।
आजादी के 75 साल, अब व्यवस्था पर विचार करने की जरूरत
जस्टिस माहेश्वरी के बाद जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस आरक्षण पर अपना फैसला सुनाया. उन्होंने कहा, संविधान के 103वें संशोधन को बुनियादी ढांचे का उल्लंघन या भेदभावपूर्ण बताकर रद्द नहीं किया जा सकता. ईडब्ल्यूएस कैटेगरीज के एडवांसमेंट के लिए स्टेट एमेंडमेंट्स लेकर आए हैं. आजादी के 75 साल के बाद, हमें समाज के व्यापक हितों में आरक्षण की व्यवस्था पर फिर से विचार करने की जरूरत है।
जस्टिस पारदीवाला ने कहा, स्वार्थ के लिए नहीं भलाई के लिए है आरक्षण
जस्टिस पारदीवाला ने जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस त्रिवेदी के फैसले से सहमति जताते हुए कहा कि, ‘आरक्षण अंत नहीं है, यह एक साधन है जिसे निजि स्वार्थ नहीं बनने देना चाहिए.’ उन्होने फैसला पढ़ते हुए कहा कि आरक्षण अनिश्चित काल के लिए जारी नहीं होना चाहिए ताकि यह किसी का निजि स्वार्थ न बन जाए. इसके लिए एक टाइमलाइन होनी चाहिए. उन्होंने आखिर में कहा कि, अंत में मैं ईडब्ल्यूएस संशोधन को बरकरार रखता हूं।
जस्टिस भट्ट ने इसे असंवैधानिक बताया
ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण के मामले में जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आरक्षण की सीमा जो कि 50 प्रतिशत है उसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण को खत्म करना होगा. उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग के गरीबों को आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों से अलग करने का संशोधन भेदभाव के फोर्म्स को प्रतिबंधित करता है. यह इक्वेलिटी कोड को सीधे तौर पर निशाना बनाती है. सीजेई यूयू ललित ने कहा कि वह जस्टिस भट्ट के फैसले से पूरी तरह से सहमत हैं।
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