पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए 6 लोगों को अब सुप्रीम कोर्ट ने रिहा करने का आदेश दिया है. सुप्रीम को...
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए 6 लोगों को अब सुप्रीम कोर्ट ने रिहा करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार नलिनी श्रीहरन और आरपी रविचंद्रन समेत 6 दोषी रिहा होंगे. रिहाई का फैसला आने के बाद नलिनी श्रीहरन ने खुशी जताई है. नलिनी ने कहा है, ‘मैं जानती हूं, मैं आतंकवादी नहीं हूं.’ वहीं, नलिनी की मां ने कहा है, ‘मैं कहना पसंद करूंगी कि सच की जीत हुई है.’ इसके साथ ही तमिलनाडु में नलिनी के समर्थकों के बीच भी खुशी की लहर है. वेल्लोर में उसके घर के पास उनके समर्थकों ने खुशी में आतिशबाजी की और मिठाई बांटी।
सुप्रीम कोर्ट से रिहाई का फैसला आने के बाद नलिनी श्रीहरन ने मीडिया से कहा है, ‘मैं जानती हूं कि मैं आतंकवादी नहीं हूं. मैंने जेल में कई साल परेशानी झेली है. आखिरी के 32 साल मेरे लिए चुनौती भरे रहे. मैं उन सभी लोगों का धन्यवाद देती हूं, जिन्होंने मेरी मदद की. मैं तमिलनाडु के लोगों और अपने वकीलों को धन्यवाद देती हूं.’
मां ने कहा- खुशी का कोई ठिकाना नहीं
वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नलिनी श्रीहरन का परिवार काफी खुश है. नलिनी के परिजनों ने कहा कि बहुप्रतीक्षित रिहाई कुछ और नहीं बल्कि असीम आनंद की अनुभूति है. नलिनी की मां एस पद्मा ने कहा, ‘खुशी के भाव शब्दों में बयां नहीं किए जा सकते. इस खुशी का कोई ठिकाना नहीं है, बल्कि यह असीम आनंद की अनुभूति के अलावा और कुछ नहीं है. उन्होंने कहा कि नलिनी और अन्य को शीर्ष अदालत द्वारा रिहा किये जाने (के निर्णय) से न्यायपालिका में उनके परिवार का भरोसा कई गुना बढ़ गया है।
नलिनी ने पैरोल के मानकों का हवाला देकर अपनी रिहाई के बारे में कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. पद्मा ने कहा, मैं यह कहना पसंद करुंगी कि सत्य की जीत हुई है. नलिनी, श्रीहरन उर्फ मुरुगन की पत्नी है और दोनों की एक बेटी है, जो लंदन में रहती है।
वकील ने कही ये बात
वहीं, नलिनी के वकील पी पुगालेंथी ने रिहाई के फैसले पर शुक्रवार को खुशी प्रदान करने वाला बताया है. रिहाई के आदेश पर प्रतिक्रिया पूछने पर नलिनी के वकील ने तमिल में मग्जहची शब्द कहा, जिसका अर्थ खुशी है. पुगालेंथी ने कहा, शीर्ष न्यायालय का फैसला यह याद दिलाता है कि राज्यपाल को मंत्रिमंडल की सिफारिश पर काम करना चाहिए और कैदियों को रिहा करना चाहिए. उन्होंने मारु राम बनाम भारत सरकार मामले में शीर्ष न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए यह कहा।
वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 1981 के फैसले ने स्पष्ट कर दिया है कि संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत सजा की अवधि घटाने और कैदियों को रिहा करने की शक्ति राज्य सरकार में निहित है. इस तरह, राज्यपाल मंत्रिमंडल के फैसले को मंजूरी देने के लिए कर्तव्यबद्ध है. उन्होंने कहा, इस तरह, अनुच्छेद 161 ने इसे स्पष्ट कर दिया है. राज्यपाल शब्द को राज्य सरकार के रूप में पढ़ा जाना चाहिए और उच्चतम न्यायालय ने इसे पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है।
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