इन दिनों सोशल मीडिया पर पंजाब के किसानों के कुछ वीडियो वायरल हो रहे हैं जिनमें वे अपनी गेहूं की फसल बेचने के लिए अडानी समूह के गोदाम जाते ...
इन दिनों सोशल मीडिया पर पंजाब के किसानों के कुछ वीडियो वायरल हो रहे हैं जिनमें वे अपनी गेहूं की फसल बेचने के लिए अडानी समूह के गोदाम जाते दिख रहे हैं। वीडियो पंजाब के मोगा जिले के बताए जा रहे हैं। वायरल वीडियोज के मुताबिक, यहां के किसान अडानी समूह के पास अपनी गेहूं की फसल बेचने के लिए जा रहे हैं।
दावा किया जा रहा है कि ये किसान सरकारी मंडियों में जाने के बजाय जहां किसानों से गेहूं को सरकार द्वारा निर्धारित एमएसपी पर खरीदा जाता है, वे अपनी फसल एक निजी फर्म को बेचना पसंद कर रहे हैं। वैसे इन दावों की सच्चाई कुछ और है।
क्या है दावों की सच्चाई?
ये किसान असल में अडानी समूह को अपनी फसल नहीं बेच रहे हैं बल्कि केंद्र सरकार के भारतीय खाद्य निगम (FCI) को बेच रहे हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एफसीआई ने अडानी के साइलो प्लांट को खरीदे गए अनाज को स्टॉक करने के लिए किराए पर लिया है।
यहां गेहूं बेचने से किसानों को होता है लाभ
यह साइलो 2007 से चालू है और 2 लाख टन अनाज को स्टोर करने की क्षमता रखता है। यहां हर गेहूं के मौसम में किसानों से सीधे लगभग 80,000 से 90,000 टन अनाज आता है। किसान अपने आढ़तियों (कमीशन एजेंट) के जरिए ही यहां आते हैं।
15 से 20 किमी के दायरे में स्थित गांवों के किसान यहां अपनी फसल बेचने आते हैं। उनका कहना है कि साइलो पर सरकार द्वारा एमएसपी तय किया जाता है, लेकिन यहां उन्हें अनलोडिंग और तौल शुल्क का भुगतान नहीं करना पड़ता है और पूरी ट्रॉली को एक बार में तौला जाता है और इससे उन्हें 6o से 65 रुपये प्रति क्विंटल की बचत होती है।
कभी किसानों ने किया था विरोध
ज्ञात हो कि केंद्र के वापस लिए जा चुके तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान आन्दोलन के समय अडानी समूह के खिलाफ भी खूब प्रदर्शन हुआ था। कुछ किसान समूहों ने आरोप लगाया था कि अडानी समूह अनाज की जमाखोरी के लिए अनाज भंडारण सुविधाओं का निर्माण कर रहा है ताकि बाद में वह उस अनाज को अधिक कीमतों पर बेच सके। हालांकि अडानी समूह ने उसी समय सफाई देते हुए कहा था कि वे केवल अनाज को रखने के लिए सरकार को अपनी भंडारण सुविधाओं को किराए पर देते हैं।
अडानी नहीं भारत सरकार खरीदती है किसानों की फसल
मोगा में अडानी एग्री लॉजिस्टिक के क्लस्टर मैनेजर अमनदीप सिंह सोनी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि हर साल उन्हें किसानों से लगभग 80,000 से 90,000 टन गेहूं सीधे मिलता है और इस साल भी वे यही उम्मीद कर रहे हैं।
सोनी ने कहा, 'हम एफसीआई को भंडारण की जगह मुहैया कराते रहे हैं और इसके बदले सरकार अडानी समूह को सरकारी एजेंसी द्वारा तय किए गए किराए और हैंडलिंग शुल्क का भुगतान करती है, लेकिन फसल केवल एफसीआई द्वारा खरीदी जाती है।'
वहीं एफसीआई के अधिकारियों का कहना है कि इससे किसानों को कुछ लाभ मिलता है और एफसीआई भी ट्रांसपोर्टेशन शुल्क पर बचत कर रहा है क्योंकि किसान फसल को सीधे एफसीआई स्टोरेज में लाते हैं। साथ ही बोरियों में अनाज भरने की जरूरत नहीं है, इसलिए एफसीआई शुल्क पर भी बचत करता है।
क्यों यहां आते हैं किसान?
गांव खोसा कोटाला के किसान चमकोर सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि वह पिछले कुछ वर्षों से अपनी फसल ला रहे हैं क्योंकि यहां उनकी पूरी ट्रॉली एक ही बार में तौल जाती है जबकि सरकारी मंडी में छोटी तौल मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है और इसमें समय लगता है। वे मंडी में तौल करते समय प्रति क्विंटल 4-5 किलो अनाज भी खो देते हैं।
खोसा पंडो गांव के अरमानदीप सिंह ने कहा कि वे ट्रॉली में लगभग 1,500 किलो अनाज मंडी लाते हैं और इससे उन्हें ऑटोमैटिक तुलाई के कारण प्रति ट्राली 1000 रुपये की बचत होती है, हालांकि अगर अनाज एजेंसी द्वारा निर्धारित विनिर्देश के अनुसार नहीं है तो वे इसे रिजेक्ट कर देते हैं।
कोटकपूरा (फरीदकोट जिला) में 25,000 टन की क्षमता के साथ समूह का एक और ऑपरेशनल साइलो है, जबकि गुरदासपुर जिले में दो और बनने वाले हैं। साथ ही अडानी का हरियाणा के कैथल में एक और बड़ा साइलो है, जिसकी क्षमता 2 लाख टन है और 50,000 टन क्षमता वाला एक अन्य साइलो जल्द ही पानीपत में चालू होगा।
पंजाब में, 50,000 टन और 1 लाख टन के बीच की क्षमता वाले अन्य समूहों के आधा दर्जन से अधिक साइलो हैं जहां केंद्र और राज्य एजेंसियों द्वारा खरीदे गए अनाज को संग्रहीत किया जाता है।
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