छत्तीसगढ़ कला और संस्कृति की दृष्टि से समृद्ध है। इसमें भी खासतौर पर आदिवासियों की हस्तकला और शिल्प के लिए लोगों की दीवानगी देखते ही बनती है।...
छत्तीसगढ़ कला और संस्कृति की दृष्टि से समृद्ध है। इसमें भी खासतौर पर आदिवासियों की हस्तकला और शिल्प के लिए लोगों की दीवानगी देखते ही बनती है। कुछ ऐसा ही नजारा राजधानी रायपुर के पंडरी स्थित छत्तीसगढ़ हाट में देखने को मिला। यहां छत्तीसगढ़ जनजातीय क्राफ्ट मेला के तीसरे दिन बड़ी संख्या में लोग जनजातीय क्राफ्ट मेला में पहुंचे और अपने पसंद की वस्तुओं की खरीदी की। इस दौरान गोदना और ढोकरा शिल्प, बांस कला जैसी पुरानी कलाओं को नए अंदाज में देखकर युवा खासा उत्साहित नजर आए।
छत्तीसगढ़ शासन के आदिम जाति कल्याण विभाग एवं जनजातीय कार्य मंत्रालय नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित छत्तीसगढ़ जनजातीय क्राफ्ट मेला में परिवार के साथ पहुंचे महेश साकल्य ने बताया कि, वे बीते कई वर्षों से छत्तीसगढ़ हाट में आयोजित होने वाले मेला में पहुंचते हैं, लेकिन इस बार उन्हें कुछ नयापन देखने को मिला। श्री साकल्य ने बताया कि बेलमेटल, बांस और ढोकरा शिल्प के माध्यम से डेकोरेटिव आइटम्स में की गई आदिवासी कलाकारों ने अपनी संस्कृति को दिखाने का प्रयास किया है, जो शहरी क्षेत्रों में देखने को नहीं मिलता। इसलिए वे घर को आदिवासी हस्त-शिल्प से डेकोरेट करना पसंद करते हैं। वहीं जयश्री साकल्य ने कहा, साड़ी और चादरों में गोदना आर्ट के डिजाइन उन्हें भाए। साक्लय ने बस्तर के सुगंधित चावल की भी खरीदी की। माता-पिता के साथ छत्तीसगढ़ जनजातीय क्राफ्ट मेला में पहुंची ऋषिका साकल्य का कहना था कि गोदना कला प्राचीन संस्कृति का हिस्सा रही हैं, जिसके बारे में उन्होंने सुना था कि यह शरीर में गुदवाया जाता है लेकिन यहां साड़ी, सलवार-कुर्ता, चादर, गमछे में भी गोदना कला को देखकर अच्छा लगा। ऋषिका साकल्य ने बताया कि उन्हें आर्ट-क्राफ्ट और पेंटिंग में रुचि है, ऐसे में मेला में कुछ नया जानने-सीखने को मिला।
इधर इंदौर निवासी ज्योति मिश्रा ने बताया कि वे रायपुर में मायके घूमने आयी थीं, लेकिन उन्हें छत्तीसगढ़ हाट में आयोजित जनजातीय क्राफ्ट मेला की जानकारी लगी तो बहन के साथ वे खरीदारी करने पहुंच गईं। उन्होंने कहा कि, दूसरे राज्यों में खासतौर से इंदौर में बड़ी संख्या में लोग छत्तीसगढ़ की कला और विशेषकर बस्तर आर्ट के दीवाने हैं। ऐसे में उनका सुझाव था कि देश के दूसरे हिस्सों में भी छत्तीसगढ़ी जनजातीय क्राफ्ट मेला जैसे आयोजन करने चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कई चीजें आनलाइन भी उपलब्ध हैं लेकिन ऐसे आयोजनों के जरिए जहां पैसा सीधे निर्माता कलाकार तक पहुंचता है तो वहीं कद्रदान ग्राहक और हस्तशिल्प के कलाकार आपस में रूबरू होते हैं। बड़ी बहन के साथ मेला में पहुंची पेशे से शिक्षक श्रीमती माधवी तिवारी ने मेला को लेकर अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि यहां स्टाल में मौजूद महिला कलाकार का आत्मविश्वास देखकर उनमें नयी ऊर्जा आयी है। यह वास्तव में अभूतपूर्व अनुभव था जब सुदूर ग्रामीण महिलाएं पुरुषों को भी बेहिचक अपनी शिल्पकला की बारीकियों के बारे में बता रही थीं। माधवी तिवारी ने जनजातीय क्राफ्ट की खूबसूरती को सराहा।
बता दें कि छत्तीसगढ़ जनजातीय क्राफ्ट मेला के तीन दिवसीय आयोजन में कुल 61 स्टाल लगाए गए थे, जिसमें से 36 स्टाल का संचालन महिला कलाकारों द्वारा किया गया।
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