अमेरिकी स्पेस रिसर्च एजेंसी नासा ने कहा कि उसने पहली बार चंद्रमा की सतह पर पानी के निशान पाए हैं। यह खोज नासा और जर्मन एयरोस्पेस सेंटर की ...
अमेरिकी स्पेस रिसर्च एजेंसी नासा ने कहा कि उसने
पहली बार चंद्रमा की सतह पर पानी के निशान पाए हैं। यह खोज नासा और जर्मन
एयरोस्पेस सेंटर की संयुक्त परियोजना इन्फ्रारेड एस्ट्रोनॉमी (एसओएफआईए-सोफिया) के
लिए स्ट्रैटोस्फेरिक वेधशाला का उपयोग करके की गई है।
नासा के एडमिनिस्ट्रेटर जिम ब्रिडेनस्टाइन ने ट्वीट किया, हमने पहली
बार सोफिया टेलिस्कोप का इस्तेमाल कर चंद्रमा की उस सतह पर पानी की पुष्टि की है
जहां सूरज की किरण पड़ती है।
नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में प्रकाशित परिणामों से पता चलता है
कि पानी या तो छोटे उल्कापिंड के प्रभाव से बना है या सूर्य से निकले ऊर्जा के
कणों से पैदा हुआ है।
इससे पता चलता है कि पानी चंद्रमा के ठंडे क्षेत्रों तक ही
सीमित नहीं है और इसे चांद की पूरी सतह पर पाया जा सकता है।
ब्रिडेनस्टाइन ने कहा, हम अभी तक
यह नहीं जानते हैं कि हम इसे एक संसाधन के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं, लेकिन
चंद्रमा पर पानी के बारे में जानकारी हमारे शोध के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
सोफिया ने चंद्रमा के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित पृथ्वी से
दिखाई देने वाले सबसे बड़े क्रेटरों में से एक, क्लेवियस
क्रेटर में पानी के अणुओं का पता लगाया है।
चंद्रमा की सतह के पिछले अवलोकनों से हाइड्रोजन के कुछ रूप का
पता चला था, लेकिन पानी और इसके करीबी रासायनिक पदार्थ के बीच
अंतर करने में असफल था।
शोध से पचा चला है कि चांद की सतह पर एक घन मीटर मिट्टी में
लगभग 12-औंस की
बोतल के बराबर पानी है।
नासा मुख्यालय में विज्ञान मिशन निदेशालय में एस्ट्रोफिजिक्स
डिवीजन के निदेशक पॉल हट्र्ज ने कहा कि हमें संकेत मिले थे कि चांद की सूरज की
किरणों वाली सतह पर पानी मौजूद हो सकता है।
अब हम जानते हैं कि पानी वहां है। यह खोज चांद की सतह की हमारी
समझ को चुनौती देती है और गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए प्रासंगिक संसाधनों के
बारे में पेचीदा सवाल उठाती है।
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